Tuesday, November 13, 2007

Unknown

जब श्रीष्टि की सारि कायनात बुनी तुमने
में कहाँ था, तुम कहाँ थे
जब, जिस्म से रूह तक थी सिर्फ तुम्हारी ही बातें
खुदा जाने!
में कहाँ था, तुम कहाँ थे

बारीश
की इक बूंद जब ज़मीं को चूम रही थी,
बताओ --
में कहाँ था, तुम कहाँ थे

2 comments:

  1. अच्छी कविता है हिन्दी में और भी लिखिये।

    ReplyDelete
  2. Tum PUNE main the aur hum Delhi main the

    ReplyDelete