ये वक़्त हैं, जो पलों में कट रहे,
एक डोर और टूटे हुए कुछ मोतियों का गुच्छा
बड़े चाव के
झूठे रिश्ते,
वह सब झूठे चेहरे
एक गहरा सा निशान
मुखोटे में छिपाते।
ये भी बदल जायेंगे, ज़रूर।
फिर एक लम्हा होगा,
सिर्फ मैं होगा, मेरी कुछ यादें।
खोखली आँखों से हम भी
देखेंगे।
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